चतुर्युग व्यवस्था :-
चतुर्युग व्यवस्था :- इस ब्रम्हांड में चार युगों की व्यवस्था, उत्पत्ति और उनके कार्य काल का वर्णन ।
इस समय अट्ठाईसवां कलयुग चल रहा है , अट्ठाइस सतयुग, अट्ठाइस त्रेता और अट्ठाइस द्वापर युग की समाप्ति के बाद इस अट्ठाईसवां कलयुग का आगमन हुआ । सभी युगों में कलयुग की पूजा व्यवस्था बहुत ही आसान बताई गयी हैं । सतयुग द्वापर और त्रेता में लोग कितनी तपस्या कर भगवत की प्राप्ति कर पाते थे परन्तु कलियुग में भगवान की पूजा बहुत ही आसान आडम्बर रहित है कलयुग में भगवत प्राप्ति के लिए सिर्फ राम नाम का जाप ही काफी है इसका उल्लेख तमाम ग्रंथों में मिलता है तुलसी दास जी ने राम चरित मानस में इसकी विस्तृत व्याख्या की है ।
युग प्लवन के बाद भगवान विष्णु जब क्षीर सागर में शेष नाग की सैया पर माँ लक्ष्मी के साथ बैठे थे तभी भगवान नारायण ने अपनी नाभि से भगवान ब्रह्मा की उत्पत्ति की और सृष्टि की रचना के लिए आदेशित किया और कहा की हे सृष्टि रचयिता पुनः वैसे ही जैसे पहले कलयुग था उसी प्रकार इस युग का निर्माण करो और भगवान ब्रह्मा विष्णु भगवान के आदेश पर पुनः वैसे उस युग का निर्माण करते हैं। इस प्रकार भगवान ब्रह्मा ने सभी युगों का निर्माण किया ।
सतयुग, त्रेता , द्वापर के २८ युग व्यतीत हो गए हैं और कलयुग का ये अट्ठाईसवाँ युग चल रहा है। सत्ताइसवें कलयुग की जैसी व्यवस्था थी वैसे ही अट्ठाईसवें कलयुग की व्यवस्था करो । ऐसा राम चरित मानस में तुलसी दास द्वारा रचित है ।
१. कृतयुग (सतयुग)
कार्तिक शुक्लपक्ष की नवमी , श्रवण नक्षत्र एवं वृद्धि योग में कृतयुग यानि सतयुग की उत्पत्ति हुई। सतयुग की उम्र सत्रह लाख अट्ठाइस हज़ार सौर वर्ष है ।
इस युग में भगवान के चार अवतार हुए । इस युग में पाप न के बराबर और पुण्य ही पुण्य था ।
मत्स्य अवतार
कूर्म अवतार
वराह अवतार
नरसिंह अवतार और
इसी युग में हिरण्यकश्यप , प्रह्लाद, राजा बलि, और बाणासुर आदि धर्मिष्ठ राजा थे ।
२. त्रेता युग
वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया , रोहिणी नक्षत्र एवं शोभन योग में त्रेता युग का आरम्भ हुआ और त्रेता युग की उम्र बारह लाख छियान्नवे हज़ार सौर वर्ष है । इस युग में भगवान के तीन अवतार हुए । इस युग में पाप पांच और पुण्य पञ्चानवे प्रतिशत था ।
वामन अवतार
श्री राम अवतार
श्री परशु राम अवतार
इसी युग में भगीरथ, विश्वामित्र , दिलीप , राजा दशरथ , और मकरध्वज जैसे प्रतापी राजा हुए ।
३. द्वापर युग
माघ कृष्ण पक्ष की अमावस्या धनिष्ठा नक्षत्र तृतीय प्रहर में द्वापुर युग का शुरुआत हुआ और द्वापर युग की उम्र आठ लाख चौंसठ हज़ार सौर वर्ष है।
श्री कृष्ण अवतार
भगवान बुद्ध अवतार
इसी युग में अंगपाण्डु , युधिष्ठिर और राजा परीक्षित जैसे धर्मनिष्ठ राजा हुए ।
4. कलयुग (कलियुग)
भाद्रपद कृष्ण त्रयोदशी कृतिका नक्षत्र रविवार रात्रि को कलियुग का आगमन हुआ और कलयुग की उम्र चार लाख बत्तीस हज़ार सौर वर्ष है , कलयुग में पाप पंचान्नवे प्रतिशत और पुण्य पांच प्रतिशत ही होगा । इस युग में अभी तक किसी भी धर्मनिष्ठ राजा का जन्म नहीं हुआ है इस युग में वर्ण व्यवस्था नहीं है और कलियुग में शूद्र राज स्थापित होगा ।
कलयुग में न कोई धर्म होगा न वर्ण और चारो आश्रम भी नहीं होंगे, सब नर और नारी वेद पुराण का विरोध करेंगे , ब्राह्मण वेद बेचेंगे , राजा प्रजा को खा जायेंगे और वेद पुराण की आज्ञा को कोई नहीं मानेगा । जो महान झूंठा और पाखंडी होगा , दूसरे की हंसी और पराया धन गमन करेगा , वेद मार्ग को त्याग कर अचार भ्रष्ट , अमंगल वेश भूषा और मांस मदिरा खाने पीने वाले को कलयुग में लोग ज्ञानी, गुणवान, वेद ज्ञाता , वक्ता और महान पंडित कहेंगे ।
सब लोग काम, क्रोध और लोभ में व्याप्त रहेंगे, स्त्रियां अपने पति को छोड़कर पर पुरुष से प्रेम करेंगी, विधवाएं नित्य नए श्रृंगार करेंगी , पिता पुत्र की आज्ञा नहीं मानेगा , भाई भाई में बड़ा बैर रहेगा , गुरु की आज्ञा का पालन नहीं होगा ।
शूद्र ब्राह्मणो से वाद विवाद करेंगे और स्वयं को ब्रम्हज्ञानी बताएँगे और तर्क करके वेद का दोष लगाएंगे
परन्तु एक दिन ऐसा करने से वे नरक के वासी होंगे ।
इस कलयुग में लोग छल, हठ, ईर्ष्या , पाखंड , काम क्रोध, लोभ और अहंकार से व्याप्त होंगे , मनुष्य जप तप और व्रत दान न कर तामसी प्रवृति का हो जायेगा । पृथ्वी पर वर्षा नहीं होगी और न ही बोया हुआ अन्न उगेगा ।
इस कलयुग में तमाम लोग रोग से ग्रसित होंगे , मनुष्य आयु क्षीण हो जायेगे , और कोई बहिन और बेटी को नहीं मानेगा और लोग बड़े अभिमानी हो जायेंगे
सबसे बड़ी बात यह है की इस कलयुग में न ही लोगों में संतोष होगा न विवेक और न ही विश्वास लोगों के आपस में दिल नहीं मिलेंगे ।
कलियुग यद्यपि पाप और दोषों का भंडार है सतयुग , त्रेता और द्वापर में पूजा यज्ञ और योग से जो गति मिलती थी , परन्तु वही गति कलयुग में मनुष्य को भव सागर को पार करने के लिए भगवान श्री राम नाम का जप ही पर्याप्त है ।
कलियुग में हरी गुण गा कर ही मनुष्य भव सागर की गहराई पा सकता है, कलयुग में योग, यज्ञ, ज्ञान नहीं है , केवल राम नाम का गुणगान ही आधार है ।
कलियुग के सामान कोई दूसरा युग नहीं है , कलियुग में नाम का प्रताप प्रत्यक्ष है ,कलयुग एक पवित्र प्रताप है और मन से किया पुण्य तो होता परन्तु पाप नहीं होता ।
इसलिए मनुष्य को कलयुग में सुव्यवस्थित जीवन जीने के लिए भगवान में मन लगाए , पुण्य , दान (वह भी ब्राह्मणो को) जीवों पर दया , संतोष और विस्वाश करें, ऐसे मनुष्य को पूर्ण फल प्राप्त होगा । निश्छल मन से आराध्य देव की पूजा करें, पीपल के वृक्ष पर जल अर्पित करें , मन को पवित्र रखे, किसी से द्धेष भाव न रखें किसी के प्रति बुरा न सोचें वास्तव में इस कलयुग में तो जीवन की नैया पार हो जाएगी और vगले जन्म में भी कल्याण होगा।
टी ० पी 0 त्रिपाठी
मोबाइल न0 = ९७२१३९१८०५
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