देसी बेटा विदेशी बहू और बेचारी अम्मा
समय
बदला
वक़्त
बदला
ऋतू
बदली
मौसम
बदला
और
बदल
गया
पूरा
ब्रम्हांड,
प्यार
प्यार
न
रहा
सिर्फ
दिखावा
ही
दिखावा
दिखाई
देने
लगा
है और यह दिखावा अब
आगे
ही
बढ़ता
रहेगा
समाप्त
होना
असंभव
है।
पृथ्वी
से
तमाम
प्रकार
की
योनियां
समाप्त
हो
रही
है,
पर्यावरण
में
बहुत
तेज़ी
से
बदलाव
हो
रहा
है
उसी
तरह
मनुष्य
में
भी
बहुत
तेज़ी
से
बदलाव
हो
रहा
है
चूंकि
कलयुग
भी
अपना
बचपन
व्यतीत
कर
यौवन
अवस्था
में
प्रवेश
कर
चुका
है।
ऐसी
अवस्था
में
मनुष्य
को
बहुत
सोच
समझ
कर
फूँक
फूँक
कर
आगे
कदम
बढ़ाना
चाहिए,
इस
कलयुग
में
मनुष्य
की
आयु
शास्त्र
के
अनुसार
एक
सौ
बीस
वर्ष
है
परन्तु
जैसे
जैसे
कलयुग
अपनी
उम्र
से
आगे
बढ़
रहा
है
वैसे
वैसे
मनुष्य
की
उम्र
कम
होती
जा
रही
है
माने
तो
अब
मनुष्य
अधिकतम
७०
से
९०
वर्ष
ही
इस
पृथ्वी
पर
गृहस्थ
जीवन
का
आनंद
ले
पा
रहा
है
चाहे
वह
सुख
का
आनंद
हो
या
दुःख
का।
इस
पृथ्वी
पर
इस
कलयुग
में
ज्यादा
दिन
वही
जीता
है
जिसको
या
तो
ज्यादा
सुख
भोगना
या
ज्यादा
दुःख
भोगना
बाकी
रहता
है।
इस
ब्रम्हांड
में
ईश्वर
ने
सभी
रचनाये
जोड़े
में
बनाई
है
जैसे
पुरुष
स्त्री
(नर
नारी),
गाय
बैल
सुख
दुःख,
बेटा
बेटी
आदि
आदि
नाना
प्रकार
की
रचनाये
सभी
जोड़े
में
हैं
परन्तु
यदि
जोड़ा
बिछुड़
जाता
है
तो
जीवन
सिर्फ
जीने
मात्र
तक
सीमित
रह
जाता
है।
जब
घर
में
नए
सदस्य
का
आगमन
होता
है
तो
घर
परिवार
कितना
आंनदित
होता
है
चारो
तरफ
खुशियाँ
ही
खुशियाँ
मनायी
जाती
है
घर
परिवार
के
लोग
फूले
नहीं
समाते
और
वह
माँ
धन्य
हो
जाती
है
जब
वह
जन्म
देती
है
एक
लाल
का
एक
होनहार
पुत्र
का
और
आशा
करती
है
की
मेरा
यह
लाल
बड़ा
होकर
मेरे
बढ़ापे
की
लाठी
होगा,
बड़े
लाड
प्यार
से
उसे
पालती
है
अपनी
इच्छाओं
का
हनन
कर
अपने
पुत्र
की
हर
इच्छाओं
को
पूरा
करने
में
अपना
सब
कुछ
निछावर
कर
देती
है,
बेटे
को
पढ़ाती
है
लिखाती
है
बेटा
बड़ा
होकर
अपने
माँ
बाप
के
जीवकोपार्जन
के
लिए
काम
की
तलाश
कर
धन
अर्जन
करने
लगता
है।
वक़्त
बदला
समय
बीता
अचानक
बेटे
के
सिर
से
बाप
का
साया
हटा
और
माँ
के
मांग
का
सिन्दूर
मिटा
घर
का
पूरा
बोझ
बेटे
पर
आया
माँ
अकेली
बेटा
अकेला
जिंदगी
की
राह
में
भी
अकेला
माँ
की
सोच
बेटे
की
शादी
और
अपने
लिए
एक
बहु
की
दरकार
परन्तु
यह
जीवन
लीला
एक
भाग्य
पर
निर्भर
है
भाग्य
में
जो
कुछ
लिखा
होगा
उससे
अधिक
कभी
भी
किसी
भी
मनुष्य
को
नहीं
प्राप्त
हो
सकता
वह
चाहे
जितना
जो
कुछ
भी
क्यों
न
करे
यह
पूरा
भाग्य
विधाता
द्वारा
ही
पैदा
होने
से
पहले
ही
लिख
दिया
जाता
है।
फिर
वक़्त
बदला
समय
बदला
बेटा
जीवकोपार्जन
के
लिए
शहर
निकला
माँ
अकेली
बेटे
की
याद
में
दिन
रात
किसी
तरह
काट
रही
थी
की
अचानक
एक
रात
स्वप्न
में
देखा
की
उसका
बेटा
एक
सुन्दर
सुशील
बहू
लेकर
घर
आया
है
स्वप्न
में
ही
माँ
बड़ी
प्रसन्न
हो
रही
थी
की
अचानक
नींद
खुली
तो
अपने
को
अकेले
ही
पाया
न
बेटा
था
और
न
ही
बहू।
काफी
दिनों
से
बेटे
का
कोई
समाचार
न
मिला
माँ
परेशान
थी
की
एक
दिन
अचानक
बेटा
एक
लड़की
को
लेकर
माँ
के
पास
यानि
घर
पहुंचा
देखते
ही
माँ
ने
पूँछ
ही
लिया
बेटा
ये
कौन
है
बेटे
ने
कहा
माँ
यह
मेरे
साथ
कंपनी
में
काम
करती
है।
माँ
ने
अपने
बेटे
और
उस
लड़की
की
खूब
आव
भगत
की,
फिर
वक़्त
बदला
समय
बदला
बेटा
फिर
अपने
काम
पर
शहर
के
लिए
रवाना
हुआ
और
माँ
फिर
अकेली
रह
गयी।
कहते
हैं
समय
किसी
का
इंतज़ार
नहीं
करता
माँ
की
अवस्था
दिन
प्रतिदिन
बदल
रही
थी
चहरे
पर
झुर्रियां
हड्डियों
पर
सिर्फ
चमड़ी
जर्जर
अवस्था
बेटा
प्रदेश
में
ऐसी
अवस्था
सभी
मनुष्य
के
लिए
कष्टदायी
होती
है
जब
कोई
देखरेख
करने
वाला
न
हो
तो
दिन
काटने
मुश्किल
हो
जाते
हैं
और
तब
याद
आता
है
उस
जोड़े
का
जो
अकेला
इस
दुनिया
में
छोड़
गया
है।
कई
वर्ष
बीत
गए
बेटे
ने
माँ
की
सुध
न
ली
न
याद
किया
इधर
माँ
बेटे
के
याद
में
पागल
सी
होने
लगी
जब
कोई
परदेसी
गांव
आये
तो
अपने
बेटे
के
बारे
में
अवश्य
पूंछे
परन्तु
किसी
को
क्या
पता
लेकिन
सभी
के
उत्तर
हाँ
सब
अच्छा
है
आपका
बेटा
जल्दी
घर
आएगा
उसकी
माँ
को
दिलासा
दिलाने
के
लिए।
फिर
वक़्त
बदला
समय
बदला
माँ
बेटे
की
याद
में
रो
रोकर
अंधी
हो
गई
और
उसे
एक
वक़्त
की
रोटी
के
भी
लाले
पड़ने
लगे
आस
पास
पड़ोस
के
लोग
उस
बूढ़ी
माँ
की
मदद
करने
लगे
और
जीवन
की
नैया
किसी
तरह
पार
होने
लगी
जीवन
रूपी
नैया
का
खेवनहार
परमात्मा
ही
होता
है
जो सब की रक्षा
और
मदद
दोनों
करता
है।
काफी
समय
बीत
जाने
के
बाद
एक
दिन
बेटा
और
वह
लड़की
दोनों
फिर
घर
आये
माँ
का
देखते
ही
बेटे
के
आँख
से
अश्रुधारा
बहने
लगी
और
सोचने
लगा
की
जिस
माँ
ने
नौ
महीने
अपने
पेट
में
पाला
खाना
पीना
सिखाया
चलना
फिरना
सिखाया
बड़ा
किया
पढ़ाया
लिखाया
आज
उस
माँ
की
यह
हालत
मन
ही
मन
सोच
रहा
था
की
माँ
ने
कहा
बेटा
ये
कौन
है
बेटे
ने
कहा
माँ
यह
वही
लड़की
है
जो
पहले
साथ
में
आयी
थी,
माँ
ने
कहा
अच्छा
बेटा,
बेटा
मेरी
हालत
ठीक
नहीं
है
तो
तू
अब
अपनी
शादी
कर
ले
मुझे
भी
दो
वक़्त
की
रोटी
मिल
जाएगी।
बेटे
न
कहा
माँ
मै
तो
इस
लड़की
से
शादी
कर
चुका
हूँ।
माँ
एकदम
शांत
और
सोचने
लगी
चलो
बेटे
ने
जो
किया
ठीक
ही
है।
माँ
ने
आवाज़
लगाई
बहू
पहली
बार
मुख
से
बहू
शब्द
कितनी
प्रसन्न
हुई
होगी
वह
माँ
जिसने
बीस साल पहले अपने
पति
को
खोया
और
दस
साल
बाद
बेटे
और
बहू
दोनों
को
साथ
पाया
परन्तु
लालसा
सिर्फ
थी
तो
न
देखपाने
की
जो
करीब
दस
साल
पहले
ही
बेटे
की
याद
में
अंधी
हो
गयी
थी।
बहू
विदेशी
थी
बुढ़िया
की
हालत
देखकर
भी
उसके
नजदीक
नहीं
गयी,
बेटे
ने
भी
कई
बार
कहा
लेकिन
कैसे
जाती
वह
तो
एक
विदेशी
लड़की
थी।
दिन
बीता
रात
आई
बेटे
और
विदेशी
बहू
ने
योजना
बनाई
की
माँ
को
साथ
ले
चलें
वहां
माँ
भी
साथ
रहेंगी,
सुबह
होते
ही
माँ
को
बहू
और
बेटे
ने
बड़ा
लाड
प्यार
किया
और
अपनी
बनाई
योजना
माँ
को
बताई
माँ
ने
जाने
से
इंकार
किया
परन्तु
बहू
वह
भी
विदेशी
लड़की
मना
ले
गई
उस
बेचारी
बूढ़ी
अम्मा
को।
माँ
बाप
द्वारा
अर्जित
सम्पति
बेचने
का
दौर
शुरू
हुआ
और
माँ
बाप
द्वारा
गाढ़ी
कमाई
जो
तन
पेट
काट
कर
अर्जित
की
गयी
थी
वह
औने
पौने
भाव
में
बेच
दी
गई
और
शुरू
हुआ
विदेश
जाने
का
दौर,
बेटा
बहू
और
बेचारी
अम्मा
तैयार
हुए
और
चल
दिए
विदेश
जाने
की
ओर।
हवाई
अड्डा
पहुंचे
माँ
से
कहा
माँ
आप
कुछ
देर
यहाँ
इंतज़ार
करो
मै
आपका
टिकट
लेकर
आता
हूँ।
बेटे
और
बहू
टिकट
लेने
गये
और
शाम
तक
लौट
कर
नहीं
आये
अंधी
माँ
बेटे
के
इंतज़ार
में
बैठी
रही
तभी
अचानक
एक
व्यक्ति
ने
पूंछ
ही
लिया
माँ
आप
कहाँ
जा
रही
है
माँ
ने
कहा
बेटा
मै
विदेश
अपने
बेटे
और
बहू
के
साथ
जा
रही
हूँ
, बेटा
और
बहू
दोनों
टिकट
लेने
गये
हैं।
व्यक्ति
ने
कहा
माँ
इस
वक़्त
रात
के
दस
बज
रहे हैं विदेश जाने
वाली
सभी
जहाज
चली
गयी
तब
माँ
ने
सोचा
ऎसे
कैसे
हो
सकता
है
की
मेरा
बेटा
मुझे
इस
अवस्था
में
छोड़कर
कैसे
जा
सकता
है
जिस
लाल
को
मैंने
पाल
पोश
कर
इतना
बड़ा
किया
अपना
दूध
पिलाया
वह
अपनी
अंधी
माँ
को
अकेले
इस
अनजान
जगह
पर
छोड़कर
कैसे
जा
सकता
है।
अंधी
माँ
सोचती
रही
रोती
रही
आंख
से
अश्रु
धारा
का
प्रवाह
चलता
रहा
और
भगवान
को
बार
बार
यह
कोशती
रही
की
कौन
से
जन्म
का
बदला
लिया
प्रभु
कहाँ
जाऊँ
अब
कौन
सहारा
होगा।
देशी
बेटा
और
बिदेशी
बहू
ने
अपनी
ही
अंधी
बेचारी
अम्मा
को
छोड़कर
विदेश
जा
बसे
सिर्फ
बचा
क्या
अंधी
माँ
को
दर
दर
ठोकर
खाना
और
भीख
मांगना।
वक़्त
बदल
रहा
है
खुद
को
बदले
नहीं
तो
लोग
बदल
देंगे
पूरी
जिंदगी
और
खाते
रहेंगे
उस
बेचारी
अंधी
अम्मा
की
तरह
दर
बदर
ठोकर
जो
अब
इस
बुढ़ापे
में
कभी
संभल
नहीं
सकता।
भाग्य
और
किसमत
से
बढ़कर
कुछ
नहीं
है
बेचारी
अंधी
बूढ़ी
अम्मा
के
किसमत
में
ही
दर
बदर
ठोकर
ही
लिखा
था।
अतः
अनुरोध
है
कि
अपने
बच्चों
को
संस्कार
दे
बुरी
सँगति
से
दूर
रखे
और
अपनी
नज़र
बनाये
रखे
कहीं
ऐसा
न
हो
आपका
ही
बेटा
दर
दर
की
ठोकर
खिलाये
इसलिए
अधिक
से
अधिक
बच्चों
में
प्यार
बांटे
और बनाये अपना और
अपने
बच्चे
के
जीवन
का
उज्जवल
भविष्य
और
जियें
एक
सौहार्द्य
पूर्ण
जीवन।
यह
मेरी
कलयुग
की
एक
कल्पना
है
जो
आज
के
दौर
में
संभवतः
घटित
हो
रहा
होगा
या
शुरू
होने
वाला
है।
बचिए
इन
देशी
बेटों
और
विदेशी
बहुओं
से
और
बचाइए
उस
बेचारी
अम्मा
को
जिसने
अपना
पूरा
जीवन
परिवार
के
पालन
पोषण
में
लगा
दिया
हो।
आराध्य
में
मन
लगाएं
और
जिए
जीवन
की
एक
नई
दिशा
में।
जय श्री
राम
पंडित टी०
पी०
त्रिपाठी
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