Wednesday, August 1, 2018

कथा एक ऋषि की : माण्डव ऋषि



कथा एक ऋषि की : माण्डव ऋषि


ऋषि माण्डव के दर्शन करने मात्र से पूर्ण होती है मनोकामना और प्राप्त होता है पूर्ण सुख :=

त्रेता युग में भगवान के दो अवतार हुए पहला राम और दूसरा परशु राम , परशु राम के पिता जमदग्नि ऋषि की कामधेनु गाय को उनके ही साढ़ू राजा सहत्रार्जुन चुराकर ले गया जब ऋषि जमदग्नि ने परशु राम जी को कामधेनु लेन के लिये सहस्त्रार्जुन के पास भेजा तो परशुराम जी को सहत्रार्जुन ने कामधेनु देने से इंकार कर दिया इससे परशुराम जी  को क्रोध उत्पन्न हो गया और अपने फरसे से सहस्त्रार्जुन की दोनों भुजाओं को फरसे से काट डाला ,और कहा रे मूर्ख मेरे पिता जी की गाय तुम चोरी से ले आये हो आज मै तुझे जिन्दा नहीं छोडूंगा और उसी फरसे से सहत्रार्जुन का वध कर दिया और काम धेनु गाय को लेकर अपने पिता जमदग्नि के पास वापस लौट आए   जैसे ही जमदग्नि को सहत्रार्जुन के वध का समाचार परशुराम जी ने सुनाया तो जमदग्नि आग बबूला हो गए और मारने  के अपराध में परशुराम को पृथ्वी लोक पर प्रायश्चित करने के लिए पृथ्वी की तपस्या के लिए भेज दिया और पीछे सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने जमदग्नि का वध कर दिया और जब परशुराम प्रायश्चित कर वापस लौटे तो पिता का वध सुनकर अत्यंत क्रोधित हुए और प्रण किया की इस पृथ्वी को  क्षत्रियों से रहित कर दूंगा और परशुराम जी ने इस पृथ्वी को क्षत्रिय रहित कर के सभी राजाओं और देवताओं के धनुष लेकर इकठ्ठा रख दिया कहते हैं की उन तमाम धनुष के बोझ से पृथ्वी और शेषनाग जी दबने लगे और दोनों स्त्री और बालक का रूप बनाकर परशु राम जी के पास आये और कहने लगे हे प्रभु यदि ये सब धनुष राक्षसों के हाँथ लग गया तो इस पृथ्वी पर महा अनर्थ हो जायेगा यही सोचकर मै और मेरा बालक दोनों दुखी हैं और हमें कोई आश्रय भी नहीं देता क्योंकि ये बालक बहुत चंचल है। प्रभु मुझे अपने यंहा आश्रय दीजिये परशु राम जी ने स्त्री और बालक को अपने यंहा आश्रय दिया और कहा की तेरे इस चंचल बालक की हर प्रकार की गलती को हम क्षमा कर देंगे एक दिन परशु राम जी कहीं गए तो बाल रुपी शेष जी ने वहां पर रखे सारे धनुष को तोड़ डाला सिर्फ शिव जी का धनुष ही बचा , और जब परशु राम जी आये तो देखा की यह बालक शिव के धनुष को छोड़कर बाकी सारे धनुष तोड़ डाला है परशु राम जी काफी विस्मित हुए परन्तु क्रोध नहीं किया तब शेष जी ने अपना रूप दिखाया और कहा की त्रेता युग में भगवान विष्णु का अवतार अयोध्या में राजा दशरथ के यंहा राम चंद्र जी के रूप में होगा और वे ही इस धनुष को तोड़ेंगे। हे प्रभु उस समय हमारी आपकी वार्ता होगी जब श्री राम चंद्र जी धनुष को सीता स्वयम्बर के समय तोड़ेंगे।  

उस सहस्त्रार्जुन के वध के प्रायश्चित के समय त्रेता में भगवान विष्णु अवतार श्री राम चंद्र जी सीता जी के स्वयम्बर में जो शिव धनुष रखा गया था जिसे तोड़ने के लिए तमाम देशों के राजा महराजा आमंत्रित किये गए थे किसी भी राजा, देवता और राक्षसों के द्वारा धनुष नहीं टूटा जिसे भगवान श्री राम चंद्र जी के छूते ही धनुष टूट गया और टूटते ही भगवान् परशु राम जी का आगमन हुआ की कहीं भगवान् श्री राम चंद्र जी को इन तमाम राक्षसों द्वारा समस्या उत्पन्न हो और भगवान् श्री राम चंद्र जी का सारा कार्य संपन्न करा कर अंतर्ध्यान हो गए  

एक समय की बात है जब महर्षि माण्डव तांडव नमक जंगल में तपस्या कर रहे थे तो वहां के राजा मंद्रांचाल के राज्य में चोरी हो गयी और वहां के सिपाहियों ने चोरों का मुकाबला किया तो चोर तांडव वन में महर्षि के आश्रम में पहुंचे और सारा धन महर्षि के आदेश पर आश्रम में रखकर भाग गए और जब राजा के सिपाहियों ने माण्डव ऋषि से चोरों के बारे में पूंछा तो महर्षि चुप रहे तब सिपाहियों ने महर्षि को बाँध कर राजा के पास ले गए और सारी व्यथा राजा को बताया राजा ने उसी समय महर्षि का सर काट देने का आदेश दे दिया और कहा की नगर के चौराहे पर इस पाखंडी मुनि का सर काट दो ताकि इस राज्य में कभी कोई चोरी कर सके सेनापति सिपाहियों के साथ माण्डव ऋषि को नगर के चैराहे पर ले जाकर सूली पर चढ़ाकर सर काट दिया परन्तु जब सेनापति और सिपाहियों ने यह देखा की बिना सिर ही माण्डव ऋषि ध्यान मग्न हैं तो यह बात राजा को बताया और राजा तुरंत महर्षि को शूली से उतरने का आदेश दिया और महर्षि से क्षमा याचना करेने लगे  महर्षि माण्डव ने कहा की राजन इसमें आपकी कोई गलती नहीं है , यह तो मै यमराज से पूछूंगा की मुझे मेरी कौन सी गलती की सजा मिली और मै उस यमराज को श्राप भी दूंगा



उसी त्रेता युग में भगवान् राम वन गमन के समय महर्षि मांडव अयोध्या से प्रयाग होते हुए चित्रकूट के दण्डक वन की तरफ जा रहे थे तभी आकाशवाणी हुई की हे मुनिवर आप जिस प्रयोजन से भागे जा रहे हैं वह प्रयोजन सफल हुआ और भगवान् नारायण यानि भगवान् विष्णु , राम रुपी मनुष्य अवतार में पिता द्वारा आदेशित चौदह वर्ष का वनवास व्यतीत करने जा रहे हैं  

उस समय ऋषि माण्डव उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिला अंतर्गत आगई  ग्राम सभा के राम घाट नामक  गांव के समीप सई नदी के तट पहुंचे थे और वहीँ पर अपना आसान लगा कर तपस्या में लीन हो गए और प्रभु राम के आने का इंतज़ार करते रहे और भगवान राम अयोध्या से जब चले तो सई नदी पार कर ऋषि माण्डव आश्रम के पास उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिला अंतर्गत आगई  ग्राम सभा के राम घाट नामक  गांव ऋषि माण्डव को दर्शन देते हुए श्रृंग्वेर पुर पहुंचे  

आज भी ऋषि माण्डव का सिर नहीं है और उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिला अंतर्गत आगई  ग्राम सभा के राम घाट नामक  गांव के समीप सई नदी के तट पर बिलकुल खुले में बिना सिर ध्यान मग्न आसीन हैं, आज भी इस क्षेत्र में यदि कोई आपदा आती है तो पूरी ग्राम सभा जब उनके पास अपनी आस्था ले कर जाते है तो फल अवस्य प्राप्त हो जाता है, लोगों के कष्ट भी दूर हो जाते हैं और सभी दर्शनर्थियों की मनोकामना भी पूर्ण हो जाती है  

ऋषि माण्डव के दर्शन मात्र से ही मनुष्य के सारे कष्ट दूर हो जाते है।

  ऐसे महान तपस्वी ऋषि को हम बारम्बार प्रणाम करते है जो इस पृथ्वी पर दैत्यों, राक्षसों और नानाप्रकार के दानवों से अपने तप बल से सिर होते हुए भी लोगो की मनोकामना आज भी पूर्ण कर रहे हैं।

ऐसे महान ऋषि का दर्शन  कर इस कलयुग में जीवन धन्य हो जाता है और अगले जन्म का भी दरवाजा भगवान के यंहा खुल जाता है






जय हो महर्षि माण्डव की जय हो


पंडित टी 0 पी 0  त्रिपाठी
मोबाइल o  = 9336005633

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