Tuesday, August 7, 2018

मायाजाल : एक अर्धांगिनी का


मायाजाल : एक अर्धांगिनी का


बड़े भाग्य से भगवान ने इस पृथ्वी पर मनुष्य का जीवन दिया है, सुख और दुःख पैदा होने के समय में ही भाग्य विधाता ने लिख दिया है और उसी भाग्य के सहारे मनुष्य अपना पूरा जीवन जीता है   भगवान जब पैदा करता है तो भाग्य का पता अपने आप चल जाता है  की आगे मेरे साथ होगा क्या और मनुष्य को वही भाग्य समझना चाहिए उठना, बैठना , चलना , फिरना ,सोना , जागना, खाना , पीना और तमाम प्रकार के क्रिया कलाप सिर्फ ऊपर वाले के हाँथ में है , मनुष्य तो मात्र निमित्त है।

जब भगवान पृथ्वी लोक पर मनुष्य को भेजने लगे तो मनुष्य स्वर्ग लोक छोड़कर पृथ्वी पर नहीं रहा था तब किसी प्रकार भगवान के समझाने पर तैयार हुआ तो कहा हे भगवन आप मुझे पृथ्वी लोक पर भेज रहे हैं मेरे पास क्या है और कैसे वहां पर मै अपना जीवन यापन करूंगा तब भगवान बोले हे नर नारी मेरे पास सौ चीजें हैं जिसमे से मै छह चीज अपने पास रखता हूँ बाकी चौरान्नवे आपको दे देता हूँ , मनुष्य ने भी सोचा की चौरान्नवे चीज मिल गयी है अब तो पृथ्वी पर अच्छा जीवन यापन होगा और पति पत्नी भाई बहन नाते रिश्तेदार होंगे , आनंद ही आनंद होगा सोचकर पृथ्वी लोक गया और चौरान्नवे की चौकड़ी में भ्रमण करने लगा भगवान की दी गयी चौरान्नवे वस्तु पाकर सिर्फ मनुष्य परेशान ही है और आनंद किसी ओर से भी नहीं दिखाई दे रहा है।

इस कलयुग में तो इतना मनुष्य परेशान हो रहा है कि उसे खुद ही नहीं पता चल पा रहा है कि मेरे साथ हो क्या रहा है सारे नाते रिश्ते , भाई भाई का प्यार , भाई बहन का प्यार और सबसे जो भयावह स्थिति पैदा हो गयी है वह है माँ बाप की देखभाल, वजह सिर्फ बाहर से आयी हुई वह स्त्री जिसने अपने माँ बाप को छोड़ा और अपने पति से वह उसके माँ बाप को अलविदा करा देती है , परन्तु जब वह स्त्री अपने माँ बाप को अपने साथ रखकर उनकी सेवा करती है और पति द्वारा कमाया गया धन अपने ही माँ बाप पर खर्च करती है और चाहकर भी उसका पति कुछ भी नहीं कर पाता और अंदर ही अंदर अपने माँ बाप को याद कर घुटता रहता है ऐसी अवस्था में घर में कलह मची रहती है और कमाए गए धन से तो सुख मिल पाता है और घर में शांति रहती है और घर कलह प्रिय हो जाता है और मनुष्य उस अर्धांगिनी के माया जाल में फंसता चला जाता है और पूरा घर बर्बादी के कगार पर खड़ा हो जाता है और यह क्रिया कलाप सिर्फ मनुष्य के जवानी तक ही सीमित रहता है जवानी में मनुष्य प्यार में इस प्रकार अँधा हो जाता है की उसे पत्नी के अलावां कोई और दूसरी वस्तु नहीं समझ में आती है और वही मनुष्य जब बुढ़ापे के दौर में जाता है तो उससे भी बुरी अवस्था में पहुँच जाता है जैसे की उसके माँ बाप के साथ किया गया है यह पूरा ब्रम्हांड लेनी के देनी पर चलता है जो जैसा करता है फल उसी प्रकार ही प्राप्त होता है और यह सब भी भाग्य से मिलता है चाहे वह सुख हो या दुःख , पीड़ा मनुष्य को ही भुगतनी पड़ती है और यह सब संस्कार से ही संभव है


पत्नी के मायाजाल में फँस कर मनुष्य वह चीज भूल जाता है जो की उसी के माँ बाप ने उसको दिया है परन्तु ऐसे  मायाजाल में तो पति ठीक से जी पाता है और  पत्नी , ऐसी अवस्था में पति को पत्नी की बात और पत्नी को पति की बात मान कर जीवन जीना चाहिए और खुद के विचार में जो बात उचित हो, अनुचित बात कभी भी अपने दिमाग में नहीं लानी चाहिए यदि पत्नी अपने माता पिता के साथ खुश है और पति के माता पिता से नाखुश तो ऐसी अस्वथा में उस घर का सुख चैन भाग्य विधाता ही छीन लेता है और वह घर एक नरक के सामान बन जाता है और वह घर पूरी जिंदगी स्वर्ग से सुंदर कभी नहीं बन  पाता है ऐसे घर में भूत प्रेत पिशाच का वास हो जाता है और पूरी जिंदगी उस घर में कभी उन्नति नहीं हो सकती है औरत को लक्ष्मी का रूप कहा गया है परन्तु उपरोक्त जैसी औरत है तो वह किसी पिशाचिनी से कम नहीं अतएव घर में आराध्य की पूजा करो माता पिता की सेवा करो और बनाओ अपने कलयुगी रुपी घर को स्वर्ग से सुंदर और जीवो जिंदगी सौहार्द्य पूर्ण

अतः मनुष्य को पत्नी के माया जाल में फंसकर अपने माँ बाप की दिल से सेवा करनी चाहिए कभी भी जाने अनजाने में कष्ट नहीं देना चाहिए , जिस भी व्यवस्था में भगवान ने पैदा किया है उसी व्यवस्था को सिरों धार्य करना चाहिए और माँ बाप से आशीर्वाद अवश्य लेना चाहिए बुजुर्ग माँ बाप की सेवा से सारे तीर्थ की दर्शन प्राप्त होते हैं अगर माँ बाप होते तो आप होते , और फिर पत्नी कहाँ से आती और फिर ना होता ये माया रुपी अर्धांगिनी मायाजाल कष्ट तब होता जब आप होते हैं तो माँ बाप किसी अनाथाश्रम में होते हैं और ऐसे पुत्र को इस जीवन में तो क्या अगले जन्म में भी शांति नहीं मिल पाती और वही पुत्र अपने माता पिता के अंदुरुनी श्राप से कभी मुक्त नहीं हो पाता है   इसलिए निवेदन के साथ आग्रह भी है की अगर आप ने अपने माता पिता की सेवा की है तो चारों धाम के दर्शन तो हो ही गए और जन्म जन्मांतर के कष्ट भी दूर हो जायेंगे और फिर कभी भी उस घर में मायाजाल नहीं प्रवेश कर सकेगा और जियेंगे इस घोर कलयुग में एक सौहार्द्य पूर्ण जीवन।

किसी वुजुर्ग ने कहा है की :-

बाढहिं पुत्र पिता के धर्मे खेती उपजै अपने कर्मे ।।


भगवान ने जो छह चीजें अपने पास रखी है वह है :- हानि , लाभ . जीवन , मरण , यश , अपयश 

गोस्वामी तुलसी दास जी ने राम चरित मानस में लिखा है :

कहहुँ भरत भावी प्रवल बिलखि कहेहुँ मुनि नाथ हानि लाभ जीवन मरण यश अपयश विधि हाँथ ।।

                अर्थात उपरोक्त को अमल में लाये और बनायें इस कलयुग में अपना सुखद जीवन और जियें एक सुखमय पारिवारिक जीवन और बचें ऐसी अर्धांगिनी के मायाजाल से जो निरंकुश हो

जय श्री राम , जय जय श्री राम



पंडित  टी 0 पी त्रिपाठी मोबाइल 0 9336005633


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