Saturday, July 28, 2018

नव दांपत्य (पति-पत्नी) कैसे बनायें अपना सुखमय जीवन

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नव दांपत्य (पति-पत्नी) कैसे बनायें अपना सुखमय जीवन


मनुष्य पैदा होने के बाद और मरने से पहले कुछ कुछ करता रहता है कहने का मतलब इस पृथ्वी पर कोई भी चीज स्थिर नहीं है पूरी पृथ्वी चलायमान है
इसलिए मनुष्य को चाहिए की  अपनी इस थोड़ी सी जिंदगी में सत्कर्म करे जीवों पर दया करे गरीब असहाय को परेशान करे, और ज्यादा से ज्यादा परोपकार करे।
इस कलयुग में मनुष्य से दो चीजें गायब होती जा रही हैं पहला संतोष और दूसरा विश्वास , यही दो चीजें मनुष्य को सुखमय जीवन व्यतीत कराती हैं। और यदि ये दोनों चीजें मनुष्य के पास में नहीं हैं तो मनुष्य का जीवन नर्क बन जाता है

.         संतोष :-
               यदि मनुष्य में संतोष नहीं हैं तो उसका जीवन कभी भी सुखमय नहीं हो सकता उसकी जिज्ञासा कभी समाप्त नहीं हो सकती है ऐसे व्यक्ति के पास सिर्फ लालच, लोभ और मोह व्याप्त रहता है और कुछ भी पाने के लिए कुछ भी कर सकने की इच्छा जागृत करते रहता है। इसके अलावां ऐसे मनुष्य की इन्द्रियां हमेशा चारो दिशाओं में कुछ कुछ पाने के लिए भागती रहती हैं, चाहे वह मिले या मिले    परन्तु यदि मिल गयी तो दूसरी इच्छा मन में उत्पन्न हो जाती है और यदि नहीं मिली तो वह पाने के लिए परेशान हो जाता है और पाने के लिए कुछ भी कर सकता है , और ऐसे व्यक्ति को कभी भी  शांति नहीं मिल सकती है , इसलिए की भगवान् ने उसको सब कुछ दिया परन्तु संतोष ही नहीं दिया इसलिए अपने आराध्य से पूजा करते समय सिर्फ संतोष ही मांगना चाहिए , और यदि संतोष प्राप्त हो गया तो पूरा जीवन सुखमय हो गया इसकी गॉरन्टी मेरी है किसी अच्छे संत ज्ञानी पुरुष ने कहा है :-

" संतोषं परमं सुखम" यानि संतोष से बड़ा कोई सुख नहीं है

और जिस भी मनुष्य के पास संतोष आया मानो  दुनिया की सारी वस्तु  उसके पास है   संतोष चाहे पैसे  का होपढ़ाई का हो ,खाने का हो , सोने का हो आदि आदि

.         विश्वास :-
                 विश्वास मनुष्य के जीवन का सबसे बड़ा हिस्सा है अगर मनुष्य को विश्वास नहीं है तो सब कुछ होते हुए भी वह अंधकारमय जिंदगी जीता है और पूरे जीवन तो किसी का विश्वासपात्र बनता है ही उसको अपने ही घर परिवार में शांति मिलती है , आजकल देखने में यह भी रहा है की पत्नी को पति पर और पति को पत्नी पर ही विश्वास नहीं है ऐसी अवस्था में दोनों का दांपत्य जीवन सुखमय नहीं हो सकता अतः दोनों को एक दूसरे पर पूर्ण विश्वास करना चाहिए आज के इस कलयुग दौर में किसी को किसी पर भरोसा नहीं है , अपितु लोग भगवान की पूजा जरूर करते हैं परन्तु उनको भी उस पूजा पर विश्वास नहीं होता है इसलिए उस पूजा का लाभ भी नहीं मिल पाता। भगवान् की पूजा मुझे लगता है की लोग डरवश करते हैं या तो पूजा से किसी वस्तु के पाने की इच्छा रखते हैं। मनुष्य को विश्वास निःस्वार्थ  भाव से और पूजा भी निस्वार्थ भाव से करनी चाहिए आज के इस दौर में यह भी पता नहीं चल पाता की मै तो विस्वाश कर रहा हूँ क्या वह भी मुझ पर विश्वास कर रहा है।परन्तु यह समय पर अपने आप पता चल जाता है
संतोष और विस्वाश के बीच की एक सबसे भयंकर कड़ी है ईर्ष्या। ईर्ष्या वह चीज  है जो  तो ठीक से जीने देती  है और तो खुद ठीक से जी पाता है अगर हर मनुष्य ईर्ष्या करना छोड़ दे तो मै गॉरन्टी देता हूँ की मनुष्य का जीवन स्वर्ग जैसा हो जायेगा और वह अपने इस छोटे से जीवन को इस कलयुग में सतयुग की तरह अपने माँ बाप भाई बहन यानि पूरे परिवार में सुख शांति के साथ जीवन यापन करेगा ।यही नहीं अगर इस दुनिया में ईर्ष्या पूरे मनुष्य जाति से  समाप्त हो जाये तो यह कलयुग स्वर्ग बन जायेगा
और इस कलयुग के बढ़ते जीवन काल में मनुष्य सिर्फ पैसे के लिए भाग रहा है प्रतिदिन सिर्फ पैसे के बारे में सोचता है , पैसा भाई, बहन, माँ, बाप, रिश्ते नाते और तमाम प्रकार के घरेलू सम्बन्ध सिर्फ पैसे के लिए ही ख़राब हो जा रहे हैं आज के इस दौर में मनुष्य पैसा पाने के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार है परन्तु यह नहीं जानता की किस्मत में जो लिखा गया है उससे ज्यादा कुछ भी नहीं मिल सकता है और जो भी ऊपर वाले ने पैदा होने के समय लिख दिया है उसे कोई मिटा नहीं सकता है और उससे ज्यादा कुछ भी नहीं मिल सकता

यह मनुष्य का शरीर बड़ी मुश्किल से प्राप्त हुआ है पूर्व जन्म में अच्छे किये गए सत्कर्म से इस मनुष्य योनि में जन्म हुआ और मनुष्य को चाहिए की इस जन्म में सत्कर्म कर अगले मनुष्य जन्म के लिए भगवान के पास अपना भी नाम लिख जाये ऐसा सत्कर्म करना चाहिए

तुलसी दास जी ने राम चरित मानस में चौपाई लिखा है :-
" बड़े भाग मानुष तन पावा सुर दुर्लभ सब ग्रंथनि गावा" ।।
और यह भी लिखा की जो भगवान ने पैदा होने के समय लिख दिया उसको बदला नहीं जा सकताअच्छे कर्म करने से ही मनुष्य का अगला जन्म भी भगवत कृपा से मंगलमय व्यतीत होगा यदि इस कलयुग में उसके अच्छे कर्म होंगे तब नहीं तो नरक के अलावा कहीं जगह नहीं मिलेगी कर्म तो सभी करते है मनुष्य को सत्कर्म करना चाहिए
" होइहैं सोइ जो राम रचि राखा को करि तर्क बढ़ावहि साखा "।।
तुलसी दास जी ने मनुष्य को भगवान् की पूजा कलयुग में और आसान बता दिया, सतयुग में लोग सहस्त्र हज़ार वर्ष , त्रेता में हज़ार वर्ष , द्वापर में सौ वर्ष और कलयुग में सिर्फ अपनी चारपाई या  अपने विस्तर पर बैठ कर भगवान  राम का नाम लेने से भगवत प्राप्ति हो सकती है परन्तु उपरोक्त में जो कुछ लिखा गया है उसको अमल में लाने पर जीवन       की नैया इस कलयुग से पार लग सकती है , तुलसी  दास जी ने   राम चरित मानस में यह भी लिखा की :=
" कलयुग केवल नाम अधारा सुमिर सुमिरि नर उतरहिं पारा "।।
अतः मनुष्य को जीवन में सुख हो या दुःख संतोष करना चाहिए , विस्वाश करना चाहिए और ईर्ष्यालु प्रवित्ति का व्यक्ति नहीं बनना चाहिए, भगवान् के प्रति आश्था और विस्वाश होना चाहिए जीवन मंगलमय व्यतीत होगा।   
उपरोक्त को अमल में लाएं प्रतिदिन पति पत्नी अपने आराध्य इष्ट देव का पूजन करें , घर में सुख शांति बनी रहेगी और जल्द ही घर में नए नए चीजों का आगमन होगा जीवन भी मंगलमय व्यतीत होगा



जय जय श्री राम

पंडित   टी 0 पी त्रिपाठी
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