Thursday, March 14, 2019

विखरते खून के रिश्ते


विखरते खून के रिश्ते


 

जीवन बधाई हो आपको पुत्र प्राप्ति हुई है, प्रणाम काका ये सब आप लोगों का आशीर्वाद है भगवान ने आप दोनों की विनती सुन ली चलो देर से ही आये दुरुस्त आये हाँ काका सब आप लोगों का आशीर्वाद है, आज वास्तव में मुझे बड़ी प्रसन्नता हो रही है की इतने दिनों की तपस्या भगवान ने सुन ली।



जीवन की शादी के दस वर्ष हो गए थे परन्तु कोई संतान थी काफी तपस्या के बाद भगवान् ने उन दोनों की प्रार्थना सुन ली और उन्हें दस साल बाद एक पुत्र हुआ पुत्र बड़ा ही होनहार सर्वगुण संपन्न, दोनों प्राणी ने अपने पुत्र को बड़े लाड़ प्यार से पाला, पुत्र बड़ा हुआ स्कूल की पढ़ाई शुरू हुई पढ़ लिखकर बड़ा हुआ और नौकरी की तलाश की, नौकरी भी मिली

नौकरी के दौरान ही एक ऐसी लड़की से प्यार हुआ और उस लड़की ने मानो जीवन की पूरी खुशियां ही छीन ली, प्यार ऐसा पागलपन है की  अपने भी पराये दिखने लगते हैं जीवन का बेटा प्यार में इतना अँधा हो गया की जिस माँ बाप ने अपनी इस एकलौती संतान को इतने लाड़ प्यार से पाला शिक्षा दिया आज वही प्यार में सब कुछ भूल जाता है यह कैसी बिडम्बना है, लगता है जया और जीवन के जीने की आशा कि किरण निराशा में बदल गयी
  

  
शास्त्र में लिखा है और मेरा मानना है की बच्चे को कम से कम पांच प्रकार की शिक्षा माँ बाप को देना चाहिए और हर माँ बाप ये पांचों शिक्षाएं  देता भी है।  हर माँ बाप अपने बच्चे को संस्कार, शिक्षा, संगति, एकता और जीवन जीने में अपनी पहचान ये पांच मंत्र जरूर सिखाता है परन्तु जैसे ही बच्चा घर से बाहर अपने कदम रखता है ऐसी संगति मिल जाती है की माँ बाप की दी हुई सारी शिक्षाएं नज़रअंदाज़ कर निरंकुश हो जाता है और जीता है अपनी एक निरंकुश जिंदगी जिसका तो कोई उद्देश्य और ही कोई किनारा होता है और वह लड़का उद्देश्य विहीन हो इस पृथ्वी पर मरीचिका की तरह भ्रमण करता है पाता कुछ नहीं शिवाय दिखावटी प्यार के।

जीवन और जया ने कितनी देवी देवताओं से मन्नत मांगी होगी कितनी आराधना की होगी कितने व्रत रखे होंगे और अपने बच्चे के दीर्घायु के लिए कितने पंडित, पुजारी, फकीर को अन्न दान, वस्त्र दान, मुद्रा दान और  भोजन कराया होगा पता नहीं क्या क्या किया होगा अपनी एकलौती संतान के भविष्य के लिए परन्तु वही बच्चा सब कुछ भूलकर सिर्फ याद करता है प्यार की पढ़ाई।

इस ब्रम्हांड में भगवान् ने चौरासी लाख योनियां  बनाई जिसमे मनुष्य को ही हर योनि के पोषण का जिम्मा दिया और मनुष्य पैदा होने से मरने तक कुछ कुछ सीखता है बाकी योनियों को भगवान् पैदा करते ही पूरी बुद्धि प्रदान कर देता है।

इस कलयुग में बदलाव इतनी रफ़्तार पकड़ चुका है की बदलाव को बदल पाना अब काफी मुश्किल है और असंभव भी, पहले हर मनुष्य प्यार से रहता था खाता था एक दूसरे से अच्छे सम्बन्ध हुआ करते थे परन्तु आज सिर्फ पैसा बाकी सब शून्य, पैसे के लिए नाते रिश्ते मित्र सब पराये हो जा रहे हैं।




मनुष्य माया रूपी जाल में इतना फंसता जा रहा है की अब उस जाल से निकल पाना सब के लिए मुश्किल होता जा रहा है। पृथ्वी पर भगवान् नारायण मनुष्य रूपी अवतार ले कर मनुष्य को जीवन जीने की कला प्रेम, सम्बन्ध नाना प्रकार की व्यवस्थाएं प्रदान की परन्तु आज मनुष्य भगवान् को ही मानने से इंकार करता नज़र रहा है , आज छल डम्ब लोभ समाया हुआ है और मनुष्य माया के पीछे भाग रहा है ऐसी अवस्था में क्या अब भला होने वाला है यह एक विचारणीय है।

पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल, और हवा भी इस कलयुगी मनुष्य से डरने लगे हैं की कही यह व्यक्ति मुझे परेशान करने लगे इसलिए ये खुद ही मनुष्य को देखकर स्वयं अपने आप में बदलाव कर ले रहे हैं परन्तु मनुष्य को अब किसी का डर नहीं रह गया है और स्वयं अपने को नारायण भगवान् मानने लगा है, परिस्थिति इतनी विकराल हो गई है की अब संभल पाना काफी मुश्किल है।

इस माया रूपी रूप के बदलाव का अंत निश्चित जरूर है,   इंतज़ार सिर्फ समय का, समय किसी का नहीं समय का आना जाना ये उस नारायण का दिया हुआ एक अलौकिक यन्त्र तंत्र है जो कभी रुका है कोई रोक पायेगा, आना जाना लगा रहेगा इस पृथ्वी पर, माया किसी की है रहेगी कभी प्यार रहेगा, जीवन को सफल बनाने के लिए भगवत आराधना ही समय के साथ चलती रहेगी और इस कलयुग में अट्ठारह पुराणों में सिर्फ दो चीज को स्मरण करें एक परोपकार और दूसरा किसी असहाय व्यक्ति को किसी भी प्रकार की तकलीफ दें। जीवन कि नैया अपने आप पार लग जाएगी।

जीवन और जया अपना किसी तरह जीवन यापन करने लगे, पुत्र प्यार के दरिया में गोते लगा रहा था दोनों की नैया भगवान भरोसे चल रही थी करीब शादी के दस वर्ष बाद जीवन के घर में कोई संतान पैदा हुई है, घर में खुशियां ही खुशियां, गांव घर नाते रिश्ते के लोगों का आना जाना और जीवन की खुशियों में शामिल होना जीवन के परिवार को बड़ी सुख की अनुभूति थी। जीवन अपनी पत्नी जया के साथ एक सादगी पूर्ण जिंदगी व्यतीत कर रहे थे, अपनी मेहनत से घर में किसी प्रकार की कोई कमी थी, कमी थी जो उसको उपरवाले ने पूर्ण कर दी। जीवन और जया ने अपने बच्चे को संस्कार दिया शिक्षा दिया समय बदला लोग बदले परन्तु क्या यह जीवन को पता था कि ये भी दिन देखने को मिलेंगे कि बेटे की प्यार की दरिया में मेरे इस बचे हुए जीवन का क्या होगा।
 
                जब अपना ही खून माँ बाप को पहचानने से मना कर दे जिस माँ बाप ने अपने पुत्र के लिए या अपने बच्चे के लिए पूरा जीवन लगा दिया हो ऐसी अवस्था में आप खुद समझ सकते हैं की दोनों के जीवन की नैया का खेवन हार कौन हो सकता है, कौन होगा बुढ़ापे की लाठी, सहारा सिर्फ उस उपरवाले का जिसने  जीवन दिया है कहने का तात्पर्य जिस माँ ने नौ महीने अपने गर्भ में रखा, पैदा होने से बड़ा होने तक दिल का  टुकड़ा समझा, बेटे की हर इच्छाएं पूरी की अपनी इच्छाओं का हनन किया आज जब वही बच्चा माँ को पहचानने से इंकार कर दे तो आप स्वयं सोच सकते हैं की उस माँ के ऊपर क्या बीतती होगी इसका अंदाजा एक माँ ही लगा सकती है अनुभव आप और हम कर सकते हैं।



भगवान् ने सबसे बड़े रिश्ते का प्रमाण सिर्फ खून के रिश्ते से ही दिया है लगता है आज वही खून के रिश्ते बिखरने लगे है, और जब अपना ही खून बिखर जाता है तो मिलता कुछ नहीं और अपने आप सारे के सारे रिश्ते नाते बिखर जाते हैं। ऐसी विकराल परिस्थिति पैदा होती जा रही है  जिसका रुकना अब सिर्फ युग में बदलाव होना। इस कलयुग में तो संभव नहीं है जो भी अभी कुछ बचा है वह भी धीरे धीरे  समाप्त होता दिखाई दे रहा है और इसका असर पीढ़ी दर पीढ़ी बढ़ता ही जा रहा है यह परिवेर्तन मनुष्य को जीवन रूपी दरिया के किस किनारे लगाएगा कह पाना काफी असंभव है और जब खून के रिश्ते बिखरते हैं तो सिर्फ एक वस्तु दिखाई देती हैं वह हैं बर्बादी और बर्बादी का रास्ता सिर्फ प्रेम विवाह जिसका कोई धर्म  होता हैं और कोई जाति, होता हैं सिर्फ एक प्यारा प्यार रूपी पागलपन जो की एक हँसते खेलते घर को बर्बाद कर देता हैं कहते हैं प्रेम किया जाता हैं और प्यार हो जाता है ये बिलकुल सत्य हैं परन्तु मनुष्य इस प्रेम और प्यार के अर्थ को अनर्थ बना दिया हैं आशय यह हैं की मनुष्य को मनुष्य से प्रेम होना चाहिए और भगवान से प्यार होना चाहिए यदि इसका मतलब किसी नर या प्राणी के समझ में जाये तो भव सागर की नैया अपने आप पार लग जाती हैं

                 आज इस कलयुग के दौर में मनुष्य प्रेम भूलकर सिर्फ प्यार ढूंढ़ रहा हैं जो सिर्फ जवानी तक ही सीमित हैं , असली प्रेम और प्यार के पथ से ही भटक गया है और गायब हो गया है संस्कार, भाई भाई में बैर बाप और बेटे में बैर, रिश्तों में अनबन पड़ोसी से बैर पता नहीं इस छोटी सी जिंदगी में और कितने बैर देखने को मिलेंगे और याद सिर्फ मै मै मै,,,,,,,,, इसके अलावा और कुछ भी नहीं

जीवन और जया ने जिस पुत्र को बुढ़ापे की लाठी समझा, अपना खून समझा आज उसने ऐसी लाठी दी कि दोनों कि नैया सब कुछ होते हुए नर्क बन गयी और वे दोनों पुत्र मोह में इस माया रूपी संसार को छोड़कर चल बसे एक दूसरी जिंदगी बसाने, और जो उम्मीदे अपने मन में पाला था उसपर पानी फिर गया और बिखर गए वे खून के रिश्ते जो भगवान् ने मनुष्य को उपहार स्वरुप प्रदान किया है। 

आज के इस भयावह दौर में मनुष्य को सोच समझकर आगे चलना चाहिए अपने बच्चों को बताई गयी पांचो बातो को समय समय पर स्मरण कराते रहना चाहिए , पांच बाते संस्कार, शिक्षा, संगति, एकता और अपनी पहचान का पाठ जरूर पढ़ाते रहना चाहिए माँ बाप, भाई बहन, नाते रिश्ते और पड़ोस में प्यार होना चाहिए नहीं तो आने वाले वक़्त में ऐसे ही अपने ही खून के रिश्ते बिखरते रहेंगे और जाने कितने माँ बाप के खून के रिश्ते बिखरते रहेंगे।  एक माँ बाप का कर्त्तव्य है कि अपनी संतान को सही रास्ते पर लाये और संस्कार से उसे सुसज्जित करे।

समय बदला वक़्त  बदला जीवन के बेटे को भी बेटा हुआ परन्तु उसे बधाई देने कोई पहुंचा और धीरे धीरे वही दुर्दशा उनकी भी हुई जैसे उसने अपने माँ बाप के साथ किया था और उनके भी अपने खून के रिश्ते बिखर गए और उनका जीवन तो नर्क से बदतर हो गया

अतः अनुरोध है कि अपने घर परिवार बच्चे नाते रिश्ते को संजोयें और बनाये अपने जीवन जीने कि एक नई दिशा


जय श्री राम

पंडित टी० पी० त्रिपाठी
मोब = 9721391805

Tuesday, August 7, 2018

मायाजाल : एक अर्धांगिनी का


मायाजाल : एक अर्धांगिनी का


बड़े भाग्य से भगवान ने इस पृथ्वी पर मनुष्य का जीवन दिया है, सुख और दुःख पैदा होने के समय में ही भाग्य विधाता ने लिख दिया है और उसी भाग्य के सहारे मनुष्य अपना पूरा जीवन जीता है   भगवान जब पैदा करता है तो भाग्य का पता अपने आप चल जाता है  की आगे मेरे साथ होगा क्या और मनुष्य को वही भाग्य समझना चाहिए उठना, बैठना , चलना , फिरना ,सोना , जागना, खाना , पीना और तमाम प्रकार के क्रिया कलाप सिर्फ ऊपर वाले के हाँथ में है , मनुष्य तो मात्र निमित्त है।

जब भगवान पृथ्वी लोक पर मनुष्य को भेजने लगे तो मनुष्य स्वर्ग लोक छोड़कर पृथ्वी पर नहीं रहा था तब किसी प्रकार भगवान के समझाने पर तैयार हुआ तो कहा हे भगवन आप मुझे पृथ्वी लोक पर भेज रहे हैं मेरे पास क्या है और कैसे वहां पर मै अपना जीवन यापन करूंगा तब भगवान बोले हे नर नारी मेरे पास सौ चीजें हैं जिसमे से मै छह चीज अपने पास रखता हूँ बाकी चौरान्नवे आपको दे देता हूँ , मनुष्य ने भी सोचा की चौरान्नवे चीज मिल गयी है अब तो पृथ्वी पर अच्छा जीवन यापन होगा और पति पत्नी भाई बहन नाते रिश्तेदार होंगे , आनंद ही आनंद होगा सोचकर पृथ्वी लोक गया और चौरान्नवे की चौकड़ी में भ्रमण करने लगा भगवान की दी गयी चौरान्नवे वस्तु पाकर सिर्फ मनुष्य परेशान ही है और आनंद किसी ओर से भी नहीं दिखाई दे रहा है।

इस कलयुग में तो इतना मनुष्य परेशान हो रहा है कि उसे खुद ही नहीं पता चल पा रहा है कि मेरे साथ हो क्या रहा है सारे नाते रिश्ते , भाई भाई का प्यार , भाई बहन का प्यार और सबसे जो भयावह स्थिति पैदा हो गयी है वह है माँ बाप की देखभाल, वजह सिर्फ बाहर से आयी हुई वह स्त्री जिसने अपने माँ बाप को छोड़ा और अपने पति से वह उसके माँ बाप को अलविदा करा देती है , परन्तु जब वह स्त्री अपने माँ बाप को अपने साथ रखकर उनकी सेवा करती है और पति द्वारा कमाया गया धन अपने ही माँ बाप पर खर्च करती है और चाहकर भी उसका पति कुछ भी नहीं कर पाता और अंदर ही अंदर अपने माँ बाप को याद कर घुटता रहता है ऐसी अवस्था में घर में कलह मची रहती है और कमाए गए धन से तो सुख मिल पाता है और घर में शांति रहती है और घर कलह प्रिय हो जाता है और मनुष्य उस अर्धांगिनी के माया जाल में फंसता चला जाता है और पूरा घर बर्बादी के कगार पर खड़ा हो जाता है और यह क्रिया कलाप सिर्फ मनुष्य के जवानी तक ही सीमित रहता है जवानी में मनुष्य प्यार में इस प्रकार अँधा हो जाता है की उसे पत्नी के अलावां कोई और दूसरी वस्तु नहीं समझ में आती है और वही मनुष्य जब बुढ़ापे के दौर में जाता है तो उससे भी बुरी अवस्था में पहुँच जाता है जैसे की उसके माँ बाप के साथ किया गया है यह पूरा ब्रम्हांड लेनी के देनी पर चलता है जो जैसा करता है फल उसी प्रकार ही प्राप्त होता है और यह सब भी भाग्य से मिलता है चाहे वह सुख हो या दुःख , पीड़ा मनुष्य को ही भुगतनी पड़ती है और यह सब संस्कार से ही संभव है


पत्नी के मायाजाल में फँस कर मनुष्य वह चीज भूल जाता है जो की उसी के माँ बाप ने उसको दिया है परन्तु ऐसे  मायाजाल में तो पति ठीक से जी पाता है और  पत्नी , ऐसी अवस्था में पति को पत्नी की बात और पत्नी को पति की बात मान कर जीवन जीना चाहिए और खुद के विचार में जो बात उचित हो, अनुचित बात कभी भी अपने दिमाग में नहीं लानी चाहिए यदि पत्नी अपने माता पिता के साथ खुश है और पति के माता पिता से नाखुश तो ऐसी अस्वथा में उस घर का सुख चैन भाग्य विधाता ही छीन लेता है और वह घर एक नरक के सामान बन जाता है और वह घर पूरी जिंदगी स्वर्ग से सुंदर कभी नहीं बन  पाता है ऐसे घर में भूत प्रेत पिशाच का वास हो जाता है और पूरी जिंदगी उस घर में कभी उन्नति नहीं हो सकती है औरत को लक्ष्मी का रूप कहा गया है परन्तु उपरोक्त जैसी औरत है तो वह किसी पिशाचिनी से कम नहीं अतएव घर में आराध्य की पूजा करो माता पिता की सेवा करो और बनाओ अपने कलयुगी रुपी घर को स्वर्ग से सुंदर और जीवो जिंदगी सौहार्द्य पूर्ण

अतः मनुष्य को पत्नी के माया जाल में फंसकर अपने माँ बाप की दिल से सेवा करनी चाहिए कभी भी जाने अनजाने में कष्ट नहीं देना चाहिए , जिस भी व्यवस्था में भगवान ने पैदा किया है उसी व्यवस्था को सिरों धार्य करना चाहिए और माँ बाप से आशीर्वाद अवश्य लेना चाहिए बुजुर्ग माँ बाप की सेवा से सारे तीर्थ की दर्शन प्राप्त होते हैं अगर माँ बाप होते तो आप होते , और फिर पत्नी कहाँ से आती और फिर ना होता ये माया रुपी अर्धांगिनी मायाजाल कष्ट तब होता जब आप होते हैं तो माँ बाप किसी अनाथाश्रम में होते हैं और ऐसे पुत्र को इस जीवन में तो क्या अगले जन्म में भी शांति नहीं मिल पाती और वही पुत्र अपने माता पिता के अंदुरुनी श्राप से कभी मुक्त नहीं हो पाता है   इसलिए निवेदन के साथ आग्रह भी है की अगर आप ने अपने माता पिता की सेवा की है तो चारों धाम के दर्शन तो हो ही गए और जन्म जन्मांतर के कष्ट भी दूर हो जायेंगे और फिर कभी भी उस घर में मायाजाल नहीं प्रवेश कर सकेगा और जियेंगे इस घोर कलयुग में एक सौहार्द्य पूर्ण जीवन।

किसी वुजुर्ग ने कहा है की :-

बाढहिं पुत्र पिता के धर्मे खेती उपजै अपने कर्मे ।।


भगवान ने जो छह चीजें अपने पास रखी है वह है :- हानि , लाभ . जीवन , मरण , यश , अपयश 

गोस्वामी तुलसी दास जी ने राम चरित मानस में लिखा है :

कहहुँ भरत भावी प्रवल बिलखि कहेहुँ मुनि नाथ हानि लाभ जीवन मरण यश अपयश विधि हाँथ ।।

                अर्थात उपरोक्त को अमल में लाये और बनायें इस कलयुग में अपना सुखद जीवन और जियें एक सुखमय पारिवारिक जीवन और बचें ऐसी अर्धांगिनी के मायाजाल से जो निरंकुश हो

जय श्री राम , जय जय श्री राम



पंडित  टी 0 पी त्रिपाठी मोबाइल 0 9336005633